अनेक व्रतकथाओं, धर्मकथाओं, पुराणों में तुलसी महिमा के अनेक आख्यान हैं । भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण की कोई भी पूजा विधि तुलसी दल के बिना परिपूर्ण नहीं मानी जाती ।
जो दर्शन करने पर सारे पाप-समुदाय का नाश कर देती है, स्पर्श करने पर शरीर को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचने पर यमराज को भी भय पहुँचाती है,
आरोपित करने पर भगवान श्रीकृष्ण के समीप ले जाती है और भगवान के चरणों में चढ़ाने पर मोक्षरूपी फल प्रदान करती है, उस तुलसी देवी को नमस्कार है । (पद्म पुराणः उ.खं. 56.22)
तुलसी के निकट जो भी मंत्र-स्तोत्र आदि का जप-पाठ किया जाता है, वह सब अनंत गुना फल देने वाला होता है ।
प्रेत, पिशाच, ब्रह्मराक्षस, भूत दैत्य आदि सब तुलसी के पौधे से दूर भागते हैं ।
ब्रह्महत्या आदि पाप तथा पाप और खोटे विचार से उत्पन्न होने वाले रोग तुलसी के सामीप्य एवं सेवन से नष्ट हो जाते हैं ।
श्राद्ध और यज्ञ आदि कार्यों में तुलसी का एक पत्ता भी महान पुण्य देने वाला है ।
तुलसी के नाम-उच्चारण से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है । तुलसी ग्रहण करके मनुष्य पातकों से मुक्त हो जाता है ।
वास्तु शास्त्र में भी तुलसी को घर में सकारात्मकता लाने वाला पवित्र पौधा माना गया है तुलसी के पौधे को घर में पूर्व दिशा में रखें। इस दिशा में तुलसी का पौधा रखने पर घर में आध्यात्मिक विकास भी तेज होता है. घर के सदस्यों के बीच मनमुटाव कम होता है और प्रेम भाव बढ़ता है।
अगर किसी वजह से पूर्व दिशा में नहीं रख सकते हैं तो उत्तर पूर्व दिशा, उत्तर दिशा या फिर उत्तर पश्चिम दिशा में रख सकते हैं। इसे भूलकर भी पश्चिम दिशा में नहीं रखना चाहिए अन्यथा घर में आर्थिक उन्नति के रास्ते बंद हो जाते हैं