हिन्दू पंचांग : A Hindu Calendar

आज का हिन्दू पंचांग

  • विक्रम संवत् – 2081
  • शक संवत् – 1944
  • अयन – दक्षिणायन
  • ऋतु – शिशिर
  • मास – पौष
  • पक्ष – शुक्ल
  • तिथि – द्वितीया सुबह 08:24 तक तत्पश्चात तृतीया
  • नक्षत्र – उत्तराषाढ़ा शाम 07:21 तक तत्पश्चात श्रवण
  • योग – व्याघात रात्रि 12:59 तक तत्पश्चात हर्षण
  • राहु काल -शाम 04:41 से 06:01 तक
  • सूर्योदय – 07:18
  • सूर्यास्त – 06:01
  • दिशा शूल – पश्चिम दिशा में
  • ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 05:32 से 06:25 तक
  • निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:13 से 01:06 तक
  • व्रत पर्व विवरण – तुलसी पूजन दिवस, विश्वगुरु भारत कार्यक्रम (25 दिसम्बर से 01 जनवरी 2023), पं. मदनमोहन मालवीय जयंती
  • विशेष – द्वितीया को बृहती (छोटा बैंगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है । तृतीया को परवल खाना शत्रुओं की वृद्धि करने वाला है ।

Ekadashi 2022: It’s Benefits, Rituals and Significance

spiritual practices
  • There is no other virtue like the virtue of fasting on Ekadashi.
  • The virtue which is done by donation during solar eclipse, many times more virtue is done by fasting on Ekadashi.
  • The virtue that is done by donating cows, donating gold, and performing Ashwamedha Yagya, more merit is achieved by fasting on Ekadashi.
  • The ancestors of those who perform Ekadashi are freed from the lowly vagina and shower happiness on their family members. Therefore, there is peace and happiness in the house of those who observe this fast.
  • There is an increase in wealth, food, daughter, etc.
  • The fame increases, and faith-devotion increases, due to which life becomes happy.
  • God’s happiness is attained. In the past, King Nahash, Ambareesh, King Gadhi, etc., who fasted on Ekadashi, got all the opulence of this earth. Lord Shiva has said to Narada: By observing the Ekadashi fast, the sins of seven births of a human being are destroyed, there is no doubt about it. Fasting on Ekadashi day, donating cows, etc. has infinite folds of merit.

अकाल मृत्यु से रक्षा हेतु विशेष आरती

03 नवम्बर 2022 गुरुवार को शाम 07:30 से 04 नवम्बर शुक्रवार को शाम 06:08 तक एकादशी है ।

विशेष – 04 नवम्बर शुक्रवार को एकादशी का व्रत उपवास रखें ।
देवउठी एकादशी देव-जगी एकादशी के दिन को संध्या के समय कपूर आरती करने से आजीवन अकाल-मृत्यु से रक्षा होती है,  एक्सीडेंट, आदि उत्पातों से रक्षा होती है l
       -पूज्य बापूजी

भीष्मपंचक व्रत

04 नवम्बर 2022 शुक्रवार से 08 नवम्बर 2022 मंगलवार तक भीष्मपंचक व्रत है ।

कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूनम तक का व्रत ‘भीष्मपंचक व्रत’ कहलाता है । जो इस व्रत का पालन करता है, उसके द्वारा सब प्रकार के शुभ कृत्यों का पालन हो जाता है । यह महापुण्यमय व्रत महापातकों का नाश करने वाला है ।

कार्तिक एकादशी के दिन बाणों की शय्या पर पड़े हुए भीष्मजी ने जल की याचना की थी । तब अर्जुन ने संकल्प कर भूमि पर बाण मारा तो गंगाजी की धार निकली और भीष्मजी के मुंह में आयी । उनकी प्यास मिटी और तन-मन-प्राण संतुष्ट हुए । इसलिए इस दिन को भगवान् श्री कृष्ण ने पर्व के रूप में घोषित करते हुए कहा कि ‘आज से लेकर पूर्णिमा तक जो अर्घ्यदान से भीष्मजी को तृप्त करेगा और इस भीष्मपंचक व्रत का पालन करेगा, उस पर मेरी सहज प्रसन्नता होगी ।

कौन यह व्रत करें ?

निःसंतान व्यक्ति पत्नीसहित इस प्रकार का व्रत करें तो उसे संतान की प्राप्ति होती है ।

जो अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं, वैकुण्ठ चाहते हैं या इस लोक में सुख चाहते हैं उन्हें यह व्रत करने की सलाह दी गयी है ।

जो नीचे लिखे मंत्र से भीष्मजी के लिए अर्घ्यदान करता है, वह मोक्ष का भागी होता है ।

वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृतप्रवराय च ।
अपुत्राय ददाम्येतदुद्कं भीष्मवर्मणे ।।
वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च ।
अर्घ्यं ददामि भीष्माय आजन्मब्रह्मचारिणे ।।

‘जिनका व्याघ्रपद गोत्र और सांकृत प्रवर है, उन पुत्ररहित भीष्मवर्माको मैं यह जल देता हूँ l वसुओं के अवतार, शांतनु के पुत्र आजन्म ब्रह्मचारी भीष्म को मैं अर्घ्य देता हूँ । (स्कन्द पुराण, वैष्णव खंड, कार्तिक महात्मय)

व्रत करने कि विधि

इस व्रत का प्रथम दिन देवउठी एकादशी है । इस दिन भगवान् नारायण जागते हैं । इस कारण इस दिन निम्न मंत्र का उच्चारण करके भगवान् को जगाना चाहिए ।

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज ।
उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यमन्गलं कुरु ।।

‘हे गोविन्द ! उठिए, उठिए, हे गरुडध्वज ! उठिए, हे कमलाकांत ! निद्रा का त्याग कर तीनों लोकों का मंगल कीजिये ।’

इन पांच दिनों में अन्न का त्याग करें । कंदमूल, फल, दूध अथवा हविष्य (विहित सात्विक आहार जो यज्ञ के दिनों में किया जाता है ) लें ।

इन दिनों में पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोझरण व् गोबर-रस का मिश्रण) का सेवन लाभदायी है । पानी में थोड़ा-सा गोझरण डालकर स्नान करें तो वह रोग-दोषनाशक तथा पापनाशक माना जाता है ।

इन दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए ।

भीष्मजी को अर्घ्य-तर्पण

इन पांच दिनों निम्न मंत्र से भीष्म जी के लिए तर्पण करना चाहिए :

सत्यव्रताय शुचये गांगेयाय महात्मने ।
भीष्मायैतद ददाम्यर्घ्यमाजन्मब्रह्मचारिणे ।।

‘आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करनेवाले परम पवित्र, सत्य-व्रतपरायण गंगानंदन महात्मा भीष्म को मैं यह अर्घ्य देता हूँ ।’
    

Source – Sant Shri Asharamji Bapu Ashram 🙏🏻

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